23 September 2011

ग़ज़ल - जो मेरा है वो तेरा है, जो तेरा है वो मेरा है

एक पुरानी ग़ज़ल, मगर आप सब के लिए थोड़ी बहुत नई हो सकती है. कुछ शेर इसके शायद आपने पहले भी सुने हों, तो उन सुने हुए शेरों के साथ कुछ अनसुने शेर ग़ज़ल की शक्ल में हाज़िर हैं.

बहरे हजज (१२२२-१२२२-१२२२-१२२२) पे लिखी ये ग़ज़ल अब आपसे रूबरू है. 

वो बीता है भुला उसको जो आगे है सुनहरा है
नया जज़्बा रगों में भर नया आया सवेरा है

मुहब्बत वो भरोसा है जो शर्तों में नहीं बंधता
जो मेरा है वो तेरा है, जो तेरा है वो मेरा है

नजरिया देखने का है महज़ इस ज़िन्दगी को बस
रुलाता भी ये चेहरा है, हँसाता भी ये चेहरा है

कभी गुस्सा हुए, चीखे बिना कुछ बात के उस पर
मगर वो प्यार की मूरत दुआओं का बसेरा है

तू आ के ज़िन्दगी मेरी मुकम्मल इक ग़ज़ल कर दे
अभी ये ज़ेहन में बिखरा हुआ आज़ाद मिसरा है

नीचे दिए हुए विडियो में इसी ग़ज़ल के कुछ शेर तहत में पढ़े हैं. विडियो सिद्धार्थनगर में आयोजित हुए कवि-सम्मलेन और मुशायेरे का है.



4 comments:

kshama said...

Behad sundar gazal hai!

"अर्श" said...

अब भी वो सारे मंज़र आंखों में है... सिधर्थनगर का.. वो तालियाँ जबरन बजवा लेना उन ऐसे लोगों से उफ्फ्फ्फ्फ.. कमाल कर दिये थे अंकित ! पूरी ग़ज़ल तो सुन चुका था, मगर वाकई कुछ शे'र नये हैं! बेहद खुबसूरत ग़ज़ल के लिये और उन करोडो तालियों के लिये दिल से बहुत बहुत बधाई...

अर्श

Rajeev Bharol said...

बहुत ही बढ़िया गज़ल. एक से बढ़ कर एक शेर लेकिन आखिरी शेर तो बस लाजवाब है..

daanish said...

तू आ के ज़िन्दगी मेरी मुकम्मल इक ग़ज़ल कर दे
अभी ये ज़ेहन में बिखरा हुआ आज़ाद मिसरा है

ग़ज़ल के तमाम अश`आर सीधे दिल पर
असर कर रहे हैं .....
और यह ज़िन्दगी से मुखातिब किया जाने वाला शेर
साथ लिए जा रहा हूँ !!