31 May 2010

एक खुशबू टहलती रही (काव्य संग्रह) - मोनिका हठीला (भोजक)

८ मई, २०१० को सीहोर, मध्य प्रदेश में जनाब डा. बशीर बद्र , जनाब बेकल उत्साही, हर दिल अज़ीज़ राहत इन्दौरी और नुसरत मेहंदी साहिबा के कर कमलों द्वारा मोनिका हठीला (भोजक) दीदी के काव्य संग्रह "एक खुशबू टहलती रही" का विमोचन हुआ.

माँ सरस्वती की वीणा से निकले शब्द जिस के शब्दों में घुल-मिल जाएँ तो परिणामस्वरूप आने वाली रचना अपनी अभिव्यक्ति से पढने वाले सुधि पाठक को एक आनंदमय एहसास देती है और शब्दों की खुशबू मन की असीम गहराइयों में उतरकर उसे आनंदित कर देती है.
मोनिका हठीला दीदी से मिलने और उनको सुनने का सौभाग्य मुझे मिला है और उनसे मिलने के बाद मैं इस बात से दोराय नहीं रखता कि स्वयं माँ शारदे का आशीर्वाद उनके साथ है. साहित्य के प्रति उनका ये समर्पण भाव उन्ही के शब्दों में परिलक्षित होता है-

"मैं चंचल निर्मल सरिता
भावों की बहती कविता
कविता मेरा भगवान्, मुझे गाने दो
गीतों में बसते प्राण मुझे गाने दो"


किसी भी रचना के शब्द, सिर्फ उस रचना को अभिव्यक्त नहीं करते वरन उसके रचियता के व्यक्तित्व का भी प्रतिनिधित्व करते हैं. मोनिका दीदी की हर रचना इसका साक्षात प्रमाण है-

"मन आँगन में करे बसेरा सुधियों का सन्यासी
मौसम का बंजारा गाये गीत तुम्हारे नाम."

या
" कलियों के मधुबन से, गीतों के छंद चुने
सिन्दूरी, क्षितिजों से सपनो के तार बुने
सपनों का तार तार वृन्दावन धाम
एक गीत और तेरे नाम"


"एक खुशबू टहलती रही" में शब्दों का ये सफ़र गीत, ग़ज़ल, लोक-भाषाई गीत, मौसम के गीत और मुक्तकों की शक्ल में हर भाव, हर एहसास को पिरोये हुए है. लफ़्ज़ों पे पकड़ किसी विधा विशेष की मेहमान नहीं होती, वो तो कोई भी लिबास पहन ले उसमे ही निखर पड़ती है, चाहे वो गीत हो या ग़ज़ल और इस बात का प्रमाण मोनिका दीदी के चंद अशआरों में नुमाया होता है-

"लिल्लाह ऐसे देखकर मैला ना कीजिये,
बेदाग़ चाँद चांदनी में नहाये हुए हैं हम."

या
"कहीं ख्वाब बनकर भुला तो न दोगे.
मुझे ज़िन्दगी की सजा तो न दोगे.
हँसाने से पहले बस इतना बता दो,
हंसाते-हंसाते रुला तो न दोगे."


राष्ट्रीय मंचों पे कविता पाठ कर चुकी मोनिका दीदी की पुस्तक "एक खुशबू टहलती रही" गीतों और ग़ज़लों का एक सुनहरा सफ़र है जो अपने साथ-साथ पढने वाले के मन-हृदय पर एक खुस्बूनुमा एहसास छोड़ जाता है. ये पुस्तक साहित्य का एक अनमोल नगीना है जिसे आप अपने पास सहेज के रखना पसंद करेंगे. 

मेरी सहस्त्र शुभकामनायें.

एक खुशबू टहलती रही (काव्य संग्रह)
ISBN: 978-81-909734-2-7
मोनिका हठीला (भोजक)
द्वारा श्री प्रशांत भोजक, मकान नं. बी-164
आर.टी.ओ. रीलोकेशन साइट, भुज, कच्छ (गुजरात ), संपर्क: 09825851121
मूल्य : 250 रुपये, प्रथम संस्करण : 2010
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प्रकाशक : शिवना प्रकाशन
पी.सी. लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट, बस स्टैंड, सीहोर -466001
(म.प्र.) संपर्क 09977855399

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पुस्तक के विमोचन पर बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

seema gupta said...

मोनिका जी की पुस्तक एक खुशबू टहलती रही के विमोचन की सुनहरी यादो का सुन्दर विश्लेष्ण किया है अंकित आपने. उनकी मधुर आवाज में उन्हें सुनने का अवसर भी मिला था. मोनिका जी को उनके इस संग्रह के लिए ढेरो शुभकामनाये.
regards

seema gupta said...
This comment has been removed by the author.
वीनस केसरी said...

मोनिका दीदी के काव्य संग्रह मे विविधता मिली पढ़ कर मन प्रसन्न हुआ

साथ ही साथ मैं यहाँ तारीफ़ करता हूँ मोनिका दीदी की आवाज़ की
भई वाह
जो माँ सरस्वती वन्दना और गीत मंच पर और नशिस्तन मे सुने थे वो आज भी उसी टोन में हूबहू याद हैं

दीदी हो एक बार फिर से हार्दिक बधाई

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा मोनिका जी की पुस्तक के विमोचन के बारे में जानकर. आभार.