21 January 2010

ग़ज़ल - मैं पंछी हूं मुहब्‍बत का, फ़क़त रिश्‍तों का प्‍यासा हूं

ऐसा लग रहा है कि ब्लॉग पे पोस्ट किये हुए एक अरसा हो गया है, काफी दिन हो गए थे और ब्लॉग पे कोई पोस्ट नहीं लिखी थी. कुछ व्यस्तता कहूं या नेट कि निर्धारित सीमायें मगर जो भी हो.......... भोपाल जाना और सीहोर जाके गुरु जी का साक्षात् सानिध्य पाकर अगर ख़ुद को खुशनसीब ना कहूं तो आप सब से बेमानी होगी.

सीखने को बहुत कुछ मिला क्योंकि सिखाने वाले के पास ज्ञान का अथाह भण्डार है, केवल ग़ज़ल ही नहीं तकरीबन जो भी मुद्दे बंद पोटली से बाहर आये तो वापिस संतुष्ट होकर ही गए. हर वो बीता हुआ पल मेरे सामने जिंदा हो उठता है जब मैं आँखें मूँद के थोड़ी देर यादों के आँगन में चहलकदमी के लिए निकल पड़ता हूँ...............

गुरु जी द्वारा कहा गया हर लफ्ज़, हर वाक्य या फिर कुछ भी बहुत कुछ सिखा गया एक बात जो इनकी मैं गाँठ बाँध के सदैव अपने पास रखूँगा और चाहूँगा कि आप भी उसका अनुसरण करें. वो है...........
"एक अच्छा इंसान ही एक अच्छा लेखक/शायर हो सकता है इसलिए पहले अच्छा इंसान बनना ज़रूरी है."
यादों को समेट के लिखना मुश्किल लग रहा है इसलिए कुछ चित्र छोड़ जा रहा हूँ...........
 (कांकरहेरा  में)
 
 (सनी, सोनू, गुरु जी और सुधीर)
आज जिस ग़ज़ल से आप सब को रूबरू करवा रहा हूँ ये थोड़ी पुरानी ग़ज़ल है, बहरे हजज की इस ग़ज़ल पे बहुत लिखा गया है.

१२२२-१२२२-१२२२-१२२२
कभी झूठा समझता है कभी सच्चा समझता है.
ये उसके मन पे छोड़ा है, जो वो अच्‍छा समझता है.
  
मैं पंछी हूं मुहब्‍बत का, फ़क़त रिश्‍तों का प्‍यासा हूं
ना सागर ही मुझे समझे ना ही सहरा समझता है.

उसी कानून के फिर पास क्‍यों आते हैं सब जिसको
कोई अँधा समझता है कोई गूंगा समझता है.

जो जैसे बात को समझे उसे वैसे ही समझाओ
शराफ़त का यहां पर कौन अब लहजा समझता है.

मुसाफिर हैं नए सारे सफ़र में ज़िंदगानी के
यहाँ कोई नहीं ऐसा जो ये रस्ता समझता है.

18 comments:

अजय कुमार said...

उम्दा गजल , बधाई

गौतम राजऋषि said...

अपनी चोट की वजह से आ नहीं सका मैं वक्त पर, वर्ना तो हम साथ ही होते कुछेक दिनों के लिये गुरुकुल में...

कुछ और तस्वीरें लगा देते तुम...

ग़ज़ल हमेशा की तरह बहुत अच्छी बनी है। खासकर दूसरा और आखिरी शेर तो लाजवाब है.......

"अर्श" said...

अछि ग़ज़ल कही है अंकित तुमने ... दूसरा शे'र कमाल का है नया है... बहुत पसंद आया ... मुनासिब हो तो कुछ और तस्वीरें लगावो भाई .....


अर्श

रावेंद्रकुमार रवि said...

बहुत अच्छी कोशिश है! गुरु जी की कृपा आप पर हमेशा बनी रहे!
--
क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ"
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
--
संपादक : सरस पायस

Udan Tashtari said...

वाह जी, गुरुदेव का फर्स्ट हैण्ड आशीर्वाद मिला आपको. तस्वीरें देख कर अच्छा लगा और


गज़ल तो बेहतरीन है ही..हर शेर उम्दा लगा.

श्रद्धा जैन said...

वाह कमाल की ग़ज़ल कही है
हर शेर खूब
खास कर ...... मैं पंछी
जो जैसे बात को समझे .........
बहुत पसंद आये

संजीव गौतम said...

बहुत बढिया! आखिरी शेर बहुत अच्छा है.
तरक्की प्रभावित करने वाली है.

रविकांत पाण्डेय said...

सुंदर गज़ल है अंकित। सारे शेर पसंद आये, मुहब्बत का पंछी खूब भाया।

कंचन सिंह चौहान said...

उसी कानून के फिर पास सब आते हैं क्यों जिसको
कोई अंधा समझता है, कोई गूँगा समझता है...!

ये शेर अच्छा लगा...

Ankit said...

वीनस की टिप्पणी:-

ankit bhai kisi takneekee khraabee ke chalte blog kulte hee pareshaanee aa rahee hai aur kament nahee ho paa rahaa is liye ye mail kar rahaa hoo

aapkee nai post padhee bahut sundar gajal likhee hai aur bahut sundar sher nikaale hai kament bhee padhaa

sabhee kament se sahmat hoon 2,3,4, sher bahut sundar ban pade hain aur jitnee tareef kee jaye kam hai

1, 5 me thodaa aur mehnat karo to gajal ekdam kamaal dhmaal ho jayegee kuchh din baad is gajal ko padhnaa shaayad khud aapko bhee aisaa hee lage
--
आपका वीनस केसरी

Pushpendra Singh "Pushp" said...

ankit ji
jordar gazal har she umda
badhai

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रचना में आपने एक-एक शब्द मोती की तरह
टाँक दिया है जी!

नीरज गोस्वामी said...

प्रिय अंकित तुम्हारी किस्मत पर हम सबको रश्क है...गुरूजी का सानिध्य पा कर कौन धन्य नहीं होगा...हमरी भी किस्मत चमकेगी इसी इंतज़ार में बैठे हैं...
ग़ज़ल पर सीहोर में बिताये क्षणों का प्रभाव साफ़ दिखाई दे रहा है...खूबसूरत ग़ज़ल कही है तुमने...बहुत बहुत बधाई....
नीरज

दिगम्बर नासवा said...

बहुत लाजवाब ग़ज़ल आँकित जी .......... गुरुदेव के साथ लिए चित्र कमाल के हैं ..... मज़ा आ गया देख कर .......

हितेष said...

Lajwab likha hai dost ! Yatra Vritanat bhi uttam hai.Shubhkamnayen.

Ankit said...

@ गौतम भैय्या, चलिए फिर कभी मुलाक़ात होगी...............मैं इंतज़ार करूँगा, और तस्वीरें भी लगाऊंगा जल्द ही
@ वीनस, तुम्हारी कही बातों को दिमाग में रखूँगा

Mustfa Mahir said...

safar sahab lahaja se za hata lena.nukta nahi lagta hai

KESHVENDRA IAS said...

बहुत ही उम्दा भावों को सुंदर शब्दों मे इस ग़ज़ल मे पिरोया है, बधाई आपके लेखन के लिए.