30 August 2009

हमारा बचपन कुछ खास था...........

क्या आप बचपन के उन बेफिक्र और मस्ती भरे दिनों की कमी महसूस कर रहे हैं? मैं तो कर रहा हूँ...........
कभी कभी लगता है की सुविधाएँ हमें बहुत कुछ देकर बहुत कुछ छीन भी लेती है. जब मैं छोटा था तो तब घर में दूरदर्शन के अलावा कोई और चैनल नहीं आता था और अगर कहीं था भी तो हर किसी की पहुँच में नहीं था. मगर आज तो बाढ़ आ गई है हर साल, या कहूं हर हर महीने और हर हफ्ते कोई ना कोई नया चैनल आ जाता है. कुछ याद आया इसे देखकर, अरे ये दूरदर्शन का स्क्रीन सेवर था जो एक विशेष आवाज़ के साथ कभी आ जाता था और कहता था "रूकावट के लिए खेद है". जब हमारे पास मोबाइल फ़ोन नहीं था तब भी हम अपनों से जुड़े रहते थे, किसी को मिस कॉल देने की बजाय उसके घर के बाहर खड़े होकर जोर से उसका नाम चिलान्ना याद है आपको. तब हमारे पास प्ले स्टेशन, कंप्यूटर और आजकी वो हजारों चीजे नहीं थी मगर उस वक़्त हमारे साथ हमारे सच्चे दोस्त थे, जिनके साथ हम गली, मोहल्ले के खेल खेला करते थे और हमारे खेल कितने अजीब और दिलचस्प होते थे जैसे छुपन छुपाई, गिल्ली डंडा, कंचे और क्रिकेट तो होता ही था. अजीब इसलिए आजकल के बच्चे वो भूलते से जा रहे हैं, या फिर ये खेल काफी छोटे हो गए हैं उनके लिए. वापिस दूरदर्शन पे लौटता हूँ, चुनिन्दा कार्यक्रम और उनके लिए दीवानगी ही अलग होती है. शुक्रवार शाम ४ बजे "अलादीन और जिन्नी", रविवार की सुबह और "रंगोली", बुधवार और शुक्रवार की शाम का "चित्रहार", और चंद्रकांता, मालगुडी देस, सुरभि, भारत एक खोज, तहकीकात, देख भाई देख, व्योमकेश बक्षी, टर्निंग पॉइंट, अलिफ़ लैला, नीम का पेड़, हम लोग, बुनियाद, जंगल बुक और भी बहुत से यादगार लम्हें और विशेष रूप से "रामायण" और "महाभारत" जिन्होंने टी. वी. पे भी इतिहास रचा. मगर आज के वक़्त में हर किसी के पास विकल्प है और वो भी कई अनेक सुविधाओं के साथ. बातें तो कई हैं जो एक एक करके निकलती जाएँगी, अभी आपको छोड़ जा रहा हूँ एक खूबसूरत विडियो के साथ जिसे आपने पहले कई बार सुना होगा, फिर से अपनी यादों को ताजा कर लीजिये..........

17 comments:

ओम आर्य said...

एक खुबसूरत पोस्ट ......अतिसुन्दर

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

और अंकित, तुम्हें प्रादेशिक गीतों का कार्यक्रम 'चित्रमाला' याद है? उसमें सबसे लास्ट में एक हिंदी फ़िल्मी गीत आता था जिसे देखने के लिए लोग सारी भाषाओँ के गीत देखा करते थे. क्या ज़माना था वो. सब कुछ कितना सरल और स्वच्छ था.

दिगम्बर नासवा said...

KOOBSOORAT HAI AAPKI POST ..... PURAANI YAADEN TAAJA KARVA DI AAPNE ...

अजय कुमार झा said...

उफ़्फ़ क्या दिन थे वो भी...अब कभी न लौट के आयेंगे...सिर्फ़ यादें हैं उनकी ...आपके ये पोस्ट अब बहुत दिनों तक याद आती और दिलाती रहेगी...

"अर्श" said...

अंकित कैसे हो मियाँ ?????? वाकई आज आपने बचपन याद दिला दी और आँखें चुपचाप नाम हो कर सुखाने पर मजबूर हो गयी... मिले सुर मेरा तुम्हारा... वाकई... बचपन है यह....


अर्श

Udan Tashtari said...

बहुत सुन्दर--साथ साथ बहाती पोस्ट.

अनिल कान्त said...

haan yaad hai....

bachpan wo mera suhana

Anonymous said...

बचपन के भी क्या दिन थे.... हम बड़े क्यों हो गए :(

वीनस केसरी said...

अजी मियां अंकित आप भी खामखा सेंटी कर डेट है .......................
दूरदर्शन की ये लकीरे ................उफ़


वीनस केसरी

कुश said...

ये दिन भी बड़े प्यारे थे..

Anonymous said...

सभी का बचपन उसकी अपनी दृष्टि में खास ही होता है।
वैज्ञानिक दृ‍ष्टिकोण अपनाएं, राष्ट्र को उन्नति पथ पर ले जाएं।

नीरज गोस्वामी said...

कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन...
नीरज

संजीव गौतम said...

क्या दिन थे वे भी. मिले सुर मेरा तुम्हारा. वाह वाह आनन्द आ गया आभार अंकित भाई

कंचन सिंह चौहान said...

hmmmm .....yaad kiya bahut kuchh.....!

Ankit said...

सभी को नमस्कार और सभी का आभार,
@ निशांत जी, चित्रमाला याद है सही में उस एक फ़िल्मी गीत को सुनने के लिए मैं भी कई दफा बैठा हूँ.
मुझे ख़ुद एक सुखद अनुभूति हो राही है की मैं आप सबको उन पुराने दिनों का एक एहसास करा सका, वाकई बचपन ही ऐसी जीवन की अवस्था है जिसे हर कोई जीना चाहता है.

कडुवासच said...

... naye safar men puraani yaaden, bahut khoob !!!

गौतम राजऋषि said...

आह! वे दिन....

और "नींव" ...और "फिर वही तलाश"...और "खोज"...

आह! वे दिन....