आप सभी को मेरा नमस्कार,
कुछ लोगों को ये रचना बहुत पसंद, मैं इसे ग़ज़ल कहने की गलती कर रहा था मगर मेरे कभी किए हुए अच्छे कर्मो का ही ये फल होगा की मैं अपनी गलती को पहचान पाया तो सिर्फ़ और सिर्फ़ गुरु जी के कारन। कायदे से मुझे इसे यहाँ से तुंरत हटा लेना चाहिए मगर मैं चाह रहा हूँ की ये मुझे मेरी गलतियों का एहसास कराये और मुझे आगे अच्छा करने की प्रेरणा दे।
जिस दिन ये ग़ज़ल मैंने पोस्ट करी सौभाग्य से उसी दिन गुरु जी ने मुझे, उनसे बात करने को कहा और उनसे बात करके बहुत कुछ सीखने को मिला।
गलतियाँ:-
१] इस रचना का पहला ही मिसरा किसी और की रचना से मेल खा रहा है।
२] कुछ शेरो में मिसरा-ऐ-उला, मिसरा-ऐ-सानी को अच्छी तरह से नही जोड़ रहा है।
३] मैंने इसमे रदीफ़ "मत पूछो" लिया है जिसे मैं सही तरह से निभा नही पाया सिर्फ़ खानापूर्ति की कोशिश की है।
४] इस रचना का तीसरा शेर का एक मिसरा "दीदार तेरा दिल की कोई धड़कन हो" वजन के हिसाब से तो सही है मगर कहने में अटक रहा है।
५] मैं गुरु जी का आभार व्यक्त करना चाहता हूँ, की उन्होंने मुझे मेरी गलतियों से अवगत कराया और साथ ही साथ एक दिशा भी दी। मैंने अपनी गलती को सुधारने की कोशिश अपनी अगली रचना में की है जो इस को सुधारने के कारन ही बन पाई है.
5 comments:
प्रिय अनुज अंकित संभव हो सके तो मुझसे मेरे मोबाइल पर बात करना ।
सुबीर
हा हा हा...लगता है गुरू जी की छड़ी पड़ने वाली है अंकित...
मुझे तो ये "कम ना पड़े तेरे प्यार का ये सागर / दिल है मिरा इक सहरा तलब मत पूछो" शेर बहुत पसंद आया....
गुरूजी से बात करलो भाई...बहुत फायदा होने वाला है...
नीरज
bahut achha likhte ho ankit aap
aapki gazal bhaut pasand aayi
jald hi aapko pura padungi
Shrddha
tookbandi or urdu shabdo ka istemal vakai kabil-e-tarif hai... Agli rachna ka intezar rahega
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