11 October 2008

काव्य संकलन - "अँधेरी रात का सूरज" देखो उग गया.....

मैं नीरज जी कुछ पंक्तियाँ उधार लेना चाहूँगा,
"मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता...लेकिन क्या हम उन्हें भली भांति जानते हैं जिनसे हमारा व्यक्तिगत परिचय होता है?"

मैं अपनी हार्दिक शुभकामनाएं राकेश खंडेलवाल जी को दे रहा हूँ, उनके काव्य संकलन "अँधेरी रात का सूरज" के लिए जो अपने आप में अदभुत है और एक इतिहास का निर्माण कर रहा है, केवल रचनाओं के रूप में ही नहीं वरन विमोचन के रूप में भी।

मैं उनको उन्हीं के एक गीत की २ पंक्तियों से बधाई देना चाहता हूँ, जो अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है, अगर कहा जाए तो "गागर में सागर"।

मीत अगर तुम साथ निभाओ तो फिर गीत एक दो क्या है,
मैं सावन बन कर गीतों की अविरल रिमझिम बरसाऊंगा।

2 comments:

पंकज सुबीर said...

अंकित बहुत अच्‍छी बात उठाई है नीरज जी के शब्‍दों में । आपके द्वारा प्रेषित शुभकामनायें भी मिलीं धन्‍यवाद । आपका फोटो बहुत सुंदर आया है जो ब्‍लाग पर लगा है ।

Satish Saxena said...

अच्छा लिखते हो !